जानिए, कैसे छत्तीसगढ़ की चरवाहे की बेटी ने बदल दी लाखों परिवारों की किस्मत
07 Aug. 2018 07:09
Jagran
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मिथिलेश देवांगन, राजनांदगांव। दो मुट्ठी चावल और दो रुपए से शुरू किया गया स्वसहायता समूह आज 13 हजार छोटे-बड़े समूहों का रूप ले चुका है। दो लाख से अधिक महिलाएं इससे जुड़ी हुई हैं, जो 25 करोड़ रुपये की बचत कर चुकी हैं। इस अभियान की शुरुआत की थी एक चरवाहे की बेटी ने।
दो मुट्ठी चावल और दो रुपए से शुरू किया था स्वसहायता समूह
राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ के वन्यक्षेत्र छुरिया में रहने वाली फुलबासन यादव को इस योगदान के लिए पद्मश्री जैसे नागरिक अलंकरण से नवाजा चुका है। गरीबी की मार झेलते साधनहीन अशिक्षित आदिवासी परिवारों को आर्थिक उन्नति की राह पर लाने के अलावा फुलबासन के प्रयासों का सुपरिणाम है कि वनांचल के पांच सौ से अधिक गांवों में शराबबंदी हो चुकी है।
फुलबासन का बचपन घोर अभावों में बीता। पिता के पास कोई साधन न था। चरवाहे के रूप में परिवार का गुजारा होता। शादी के बाद ससुराल गईं तो वहां भी गरीबी से ही सामना हुआ। दस साल की उम्र में ही शादी हो गई थी और बीस की होते-होते चार बच्चे भी हो गए। गरीबी हर पल ललकारती थी। ऐसे में उन्होंने बकरी पाल कर अल्प बचत शुरू की।
वे देखती थीं कि गांव में ऐसी कई महिलाएं हैं, जो उनकी तरह ही जीवन में संघर्ष कर रही हैं। ऐसे में विचार आया कि क्यों न उन्हें साथ लेकर कुछ ऐसा किया जाए, जिससे सभी को कुछ आर्थिक लाभ हो। साल 2001 में उन्होंने मां बम्लेश्वरी स्वसहायता समूह का गठन किया। फुलबासन द्वारा बोया गया बचत का वह बीज आज विशाल वट वृक्ष बन चुका है। समूह के खाते में जमा 25 करोड़ रुपए से अधिक की राशि का उपयोग महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के मदों में किया जाता है।
फुलबासन बताती हैं, अब जिमीकंद की खेती से महिलाओं को जोड़ा जा रहा है। जैविक उत्पादन के साथ ही डेयरी व्यवसाय भी उन्हें मुहैया कराया जा रहा है। अचार, पापड़, बरी जैसे घरेलू खाद्य बनाकर भी समूह को खासी आय होती है। आज छत्तीसगढ़ के करीब तीन सौ स्टालों पर बम्लेश्वरी ब्रांड के विभिन्न उत्पाद बेचे जा रहे हैं।
भारत सरकार द्वारा 2012 में पद्मश्री से नवाजी जाने वाली फुलबासन यादव को समाजसेवा और महिला सशक्तीकरण से जुड़े अनेक सम्मान हासिल हो चुके हैं। इनमें जमुनालाल बजाज, स्त्रीशक्ति और एसआर जिंदल अवार्ड जैसे पुरस्कार शामिल हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने उन्हें शराबबंदी और महिला सशक्तीकरण के लिए अपना ब्रांड एंबेसडर भी बनाया है।
फुलबासन पर बनी डाक्यूमेंट्री फिल्म
महिला सशक्तीकरण की दिशा में फुलबासन यादव के अमूल्य योगदान को देखते हुए पिछले साल केंद्र सरकार ने उन पर डाक्यूमेंट्री फिल्म भी तैयार कराई। इसमें ग्रामीण विकास में उनके इस कारगर मॉडल की खूबियों को दर्शाया गया है।
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मिथिलेश देवांगन, राजनांदगांव। दो मुट्ठी चावल और दो रुपए से शुरू किया गया स्वसहायता समूह आज 13 हजार छोटे-बड़े समूहों का रूप ले चुका है। दो लाख से अधिक महिलाएं इससे जुड़ी हुई हैं, जो 25 करोड़ रुपये की बचत कर चुकी हैं। इस अभियान की शुरुआत की थी एक चरवाहे की बेटी ने।
दो मुट्ठी चावल और दो रुपए से शुरू किया था स्वसहायता समूह
राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ के वन्यक्षेत्र छुरिया में रहने वाली फुलबासन यादव को इस योगदान के लिए पद्मश्री जैसे नागरिक अलंकरण से नवाजा चुका है। गरीबी की मार झेलते साधनहीन अशिक्षित आदिवासी परिवारों को आर्थिक उन्नति की राह पर लाने के अलावा फुलबासन के प्रयासों का सुपरिणाम है कि वनांचल के पांच सौ से अधिक गांवों में शराबबंदी हो चुकी है।
फुलबासन का बचपन घोर अभावों में बीता। पिता के पास कोई साधन न था। चरवाहे के रूप में परिवार का गुजारा होता। शादी के बाद ससुराल गईं तो वहां भी गरीबी से ही सामना हुआ। दस साल की उम्र में ही शादी हो गई थी और बीस की होते-होते चार बच्चे भी हो गए। गरीबी हर पल ललकारती थी। ऐसे में उन्होंने बकरी पाल कर अल्प बचत शुरू की।
वे देखती थीं कि गांव में ऐसी कई महिलाएं हैं, जो उनकी तरह ही जीवन में संघर्ष कर रही हैं। ऐसे में विचार आया कि क्यों न उन्हें साथ लेकर कुछ ऐसा किया जाए, जिससे सभी को कुछ आर्थिक लाभ हो। साल 2001 में उन्होंने मां बम्लेश्वरी स्वसहायता समूह का गठन किया। फुलबासन द्वारा बोया गया बचत का वह बीज आज विशाल वट वृक्ष बन चुका है। समूह के खाते में जमा 25 करोड़ रुपए से अधिक की राशि का उपयोग महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के मदों में किया जाता है।
फुलबासन बताती हैं, अब जिमीकंद की खेती से महिलाओं को जोड़ा जा रहा है। जैविक उत्पादन के साथ ही डेयरी व्यवसाय भी उन्हें मुहैया कराया जा रहा है। अचार, पापड़, बरी जैसे घरेलू खाद्य बनाकर भी समूह को खासी आय होती है। आज छत्तीसगढ़ के करीब तीन सौ स्टालों पर बम्लेश्वरी ब्रांड के विभिन्न उत्पाद बेचे जा रहे हैं।
भारत सरकार द्वारा 2012 में पद्मश्री से नवाजी जाने वाली फुलबासन यादव को समाजसेवा और महिला सशक्तीकरण से जुड़े अनेक सम्मान हासिल हो चुके हैं। इनमें जमुनालाल बजाज, स्त्रीशक्ति और एसआर जिंदल अवार्ड जैसे पुरस्कार शामिल हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने उन्हें शराबबंदी और महिला सशक्तीकरण के लिए अपना ब्रांड एंबेसडर भी बनाया है।
फुलबासन पर बनी डाक्यूमेंट्री फिल्म
महिला सशक्तीकरण की दिशा में फुलबासन यादव के अमूल्य योगदान को देखते हुए पिछले साल केंद्र सरकार ने उन पर डाक्यूमेंट्री फिल्म भी तैयार कराई। इसमें ग्रामीण विकास में उनके इस कारगर मॉडल की खूबियों को दर्शाया गया है।
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